कर्मयोगी अर्थात कर्म में लीन व्यक्ति। योगा कर्मो किशलयाम, योग: कर्मसु कौशलम्। गीता के अनुसार कर्मों से संन्यास लेने अथवा उनका परित्याग करने की अपेक्षा कर्मयोग अधिक श्रेयस्कर है। कर्मों का केवल परित्याग कर देने से मनुष्य सिद्धि अथवा परमपद नहीं प्राप्त